Monday, 11 March 2024

कर्म और धर्म

यह मेरे द्वारा सैकड़ों लोगों के केस स्टडी पर आधारित है ।युवाओं के साथ काफी समय बिताने के बाद मुझे लगता है यह स्थिति लगभग 90 प्रतिशत युवाओं की हैं..

जैसे जैसे हम युवावस्था में प्रवेश करते हैं वैसे वैसे साम्यवाद की ओर झुकाव होता है। फिर धीरे धीरे हम नास्तिक हो जाते हैं घोर आस्तिक पृष्ठभूमि से बंधे हों तो भी ईश्वरीय सत्ता पर प्रश्न खड़ा करने लगते हैं, कर्मकांड अब अंधविश्वास लगता है , कर्म के सिद्धांत के अतिवाद और पश्चिमी वैज्ञानिकता के प्रभाव में भारतीय धर्म के वैज्ञानिक पक्ष को नकार देते हैं। लेकिन जब दिन रात एक करके ईमानदारी से मेहनत करके भी वांछित परिणाम नही पाते तब मन मे क्रांति होता है और दृष्टिकोण में बदलाव आता है।यह क्रांति साम्यवाद से सनातन की ओर लाता है।
अंततः ज्ञात होता है कि सब ईश्वर का खेल है।कर्म तो प्रथम शर्त है ही लेकिन किसे क्या/कब/कितना देगा और किससे क्या लेगा यह सिर्फ वही जानता है इसमें आपकी इच्छा-अनिच्छा मायने नही रखता। 
एक कहावत याद आ रहा है हालांकि इससे सीधे नही जुड़ा है..
" there is crime behind every fortune"

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